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ससुर और बहु में चुदाई 2


” ज्ज्ज…जी पिताजी.” कंचन सिर नीचे किए हुए बोली.” लेकिन बहू ये तो तुम्हारे लिए बहुत छ्होटी है. Hindi Sex Stories Antarvasna Kamukta Sex Kahani Indian Sex Chudai

Antarvasna इससे तुम्हारा कामचल तो जाता है ना?”” जी पिताजी.” कंचन सोच रही थी की किसी तरह ये धरती फाट्जाए और मैं उसमे समा जौन.” बेटी इसमे शरमाने की क्या बात

है ?. तुम्हारी उम्र में लड़कीों किकच्ची अक्सर बहुत जल्दी छ्होटी हो

जाती है. गाओं में तो औरतेंककच्ची पहनती नहीं हैं. अगर छ्होटी

हो गयी है तो सासू मया सेकः देना शहर जेया कर और खरीद एँगी.

हम गये तो हम ले आएन्गे.ळो ये सूख गयी है, रख लो.” ये कह कर

रामलाल ने कंचन को उस्कीपंती और ब्रा दे डी. इस घटना के बाद रामलाल

ने कंचन के साथ औरखुल कर बातें करना शुरू कर दिया था एक दिन

माया देवी को शहर सत्संग में जाना था. रामलाल उनको ले कर

शहर जाने वाला था. दोनो घर से सुबह स्टेशन की ओर चल

पदे.ऱास्ते में रामलाल के जान पहचान का लड़का कार से शहर जाता

हुआंिल गया. रामलाल ने कहा की आंटी को भी साथ ले जाओ. लड़का

माँगया और माया देवी उसके साथ कार में शहर चली गयी. रामलाल

घरवापस आ गया. दरवाज़ा अंडर से बूँद था. बातरूम से पानी गिरने

कियवाज़ आ रही थी. शायद बहू नहा रही थी. कंचन तो साँझ

रहिति की सास ससुर शाम तक ही वापस लौटेंगे. रामलाल के कमरे का

एकड़रवाज़ा गली में भी खुलता था. रामलाल कमरे का टला खोल के

अपनेकंरे में आ गया. उधर कंचन बेख़बर थी. वो तो समझ रही

टिकी घर में कोई नहीं है. नहा कर कंचन सिर्फ़ पेटिकोट और

ब्लाउस

में ही बाथरूम से बाहर निकाल आई. उसका बदन अब भी गीला था.

बॉल भीगे हुए थे. कंचन अपनी पनटी और ब्रा जो अभी उसने ढोई थी

सुखाने के लिए आँगन में आ गयी. रामलाल अपने कमरे के पर्दे के

पीच्चे से सारा नज़ारा देख रहा था. बहू को पेटिकोट और ब्लाउस

में देख कर रामलाल को पसीना आ गया. क्या बाला की खूबसूरत थी.

बहुत कसा हुआ पेटिकोट पहनती थी. बदन गीला होने के कारण

पेटिकोट उसके छूटरों से चिपका जेया रहा था. बहू के फैले हुए

छूटेर पेटिकोट में बरी मुश्किल से समा रहे थे. बहू का मादक

रूप मानो उसके ब्लाउस और पेटिकोट में से बाहर निकालने की कोशिश

कर रहा था. ऊफ़ क्या गड्राया हुआ बदन था. बहू ने अपनी धूलि हुई

कच्ची और ब्रा डोरी पर सूखने डाल दी. अचानक वो कुच्छ उठाने के

लिए झुकी तो पेटिकोट उसके विशाल छूटरों पर कस गया. पेटिकोट

के सफेद कापरे में से रामलाल को साफ दिख रहा था की आज बहू ने

काले रंग की कच्ची पहन रखी है. ऊफ़ बहू के सिर्फ़ बीस प्रतिशत

छूटेर ही कच्ची में थे बाकी तो बाहर गिर रहे थे. जुब बहू

सीधी हुई तो उसकी कच्ची और पेटिकोट उसके विशाल छूटरों के

बीच में फँस गये. अब तो रामलाल का लॉडा फंफनाने लगा. उसका

मून कर रहा था की वो जेया कर बहू के छूटरों की दरार में फाँसी

पेटिकोट और कच्ची को खींच के निकाल ले. बहू ने मानो रामलाल के

दिल की आवाज़ सुन ली. उसने अपनी छूटरों की दरार में फँसे

पेटिकोट को कींच के बाहर निकाला लिया. बहू आँगन में खरी थी

इसलिए पेटिकोट में से उसकी मांसल टाँगें भी नज़र आ रही थी.

रामलाल के लंड में इतना तनाव सीता को चोद्ते वक़्त भी नहीं हुआ था.

बहू के सेक्सी छूटरों को देख के रामलाल सोचने लगा की इसकी गेंड मार

के तो आदमी धान्या हो जाए. रामलाल ने आज तक किसी औरत की गेंड नहीं

मारी थी. असलियत तो ये थी की रामलाल का गढ़े जैसा लॉडा देख कर

कोई औरत गांद मरवाने के लिए राज़ी ही नहीं थी. माया देवी तो

चूत ही बरी मुश्किल से देती थी गांद देना तो बहुत डोर की बात

थी. एक दिन कंचन ने खेतों में जाने की इक्च्छा प्रकट की. उसने

सासू मया से कहा, ” मम्मी जी मैं खेतों में जाना चाहती हूँ,

अगर आप इज़ाज़त दें तो आपके खेत और फसल देख अओन. शहर में

तो ये देखने को मिलता नहीं है.”

” अरे बेटी इसमें इज़ाज़त की क्या बात है? तुम्हारे ही खेत हैं जुब

चाहो चली जाओ. मैं अभी तुम्हारे ससुर जी से कहती हूँ तुम्हें

खेत दिखाने ले जाएँ.”

” नहीं नहीं मम्मी जी आप पिताजी को क्यों परेशान करती हैं मैं

अकेली ही चली जवँगी.”

” इसमे परेशान करने की क्या बात है? काई दिन से ये भी खेत नहीं

गये हैं तुझे भी साथ ले जाएँगे. जाओ तुम तयार हो जाओ. और हन

लहंगा चोली पहन लेना, खेतों में जाने के लिए वही ठीक रहता

है.” कंचन तयार होने गयी. माया देवी ने रामलाल को कहा,

” अजी सुनते हो, आज बहू को खेत दिखा लाओ. कह रही थी मैं अकेली

ही चली जाती हूँ. मैने ही उसको रोका और कहा ससुरजी तुझे ले

जाएँगे.”

” ठीक है मैं ले जवँगा, लेकिन अकेली भी चली जाती तो क्या हो

जाता ? गाओं में किस बात कॅया डर?””

” कैसी बातें करते हो जी? जवान बहू को अकेले भेजना चाहते हो.

अभी नादान है. अपनी जवानी तो उससे संभाली नहीं जाती, अपने

आप को क्या संभालेगी? ” इतने में कंचन आ गयी. लहंगा चोली

में बाला की खूबसूरत लग रही थी.

” चलिए पिताजी मैं टायर हूँ.”

” चलो बहू हम भी टायर हैं.” ससुर और बहू दोनों खेत की ओर

निकाल परे. कंचन आगे आगे चल रही थी और रामलाल उसके पीच्चे.

कंचन ने घूँघट निकाल रखा था. रामलाल बहू की मस्तानी चाल

देख कर पागल हुआ जेया रहा था. बहू की पतली गोरी कमर बाल खा

रही थी. उसके नीचे फैले हुए मोटे मोटे चूतेर चलते वक़्त ऊपेर

नीचे हो रहे थे. लहंगा घुटनों से तोरा ही नीचे था. बहू की

गोरी गोरी टाँगें और चूटरों तक लटकते लूंबे घने काले बॉल

रामलाल की दिल की धड़कन बरहा रहे थे. ऐसा नज़ारा तो रामलाल को

ज़िंदगी में पहले कभी नसीब नहीं हुआ. रामलाल की नज़रें बहू के

मटकते हुए मोटे मोटे छूटरों और पतली बाल खाती कमर पर ही टिकी

हुई थी. उन जान लेवा छूटरों को मटकते देख कर रामलाल की आँखों

के सामने उस दिन का ंज़ारा घूम गया जिस दिन उसने बहू के छूटरों के

बीच उसके पेटिकोट और कच्ची को फँसे हुए देखा था. रामलाल का

लॉडा खड़ा होने लगा. कंचन घूँघट निकाले आगे आगे चली जेया

रही थी. वो अक्च्ची तरह जानती थी की ससुर जी की आँखें उसके

मटकते हुए नितुंबों पे लगी हुई हैं. रास्ता सांकरा हो गया था और

अब वो दोनो एक पग दांडी पे चल रहे थे. अचानक साइड की पग दांडी

से दो गधे कंचन के सामने आ गये. रास्ता इतना कूम शॉरा था की

साइड से आगे निकलना भी मुश्किल था. मजबूरन कंचन को गधों के

पीच्चे पीच्चे चलना परा. अचानक कंचन का ध्यान पीच्चे वाले

गधे पे गया.

” अरे पिताजी देखिए ये कैसा गधा है ? इसकी तो पाँच टाँगें

हैं.” कंचन आगे चल रहे गधे की ओर इशारा करते हुए बोली.”कंचन– बेटी, तुम तो बहुत भोली हो, ज़रा ध्यान से देखो इसकी पाँच टाँगें नहीं हैं.”

कंचन ने फिर ध्यान से देखा तो उसका कलेजा धक सा रह गया. गधे की पाँच

टाँगें नहीं थी,

वो तो गधे का लंड था. बाप रे क्या लंबा लंड था ! ऐसा लग रहा था जैसे उसकी टाँग हो।

कंचन ने ये भी नोटीस किया की आगे वाला गधा, गधा नहीं बल्कि गधी थी क्योंकि

उसका लंड नहीं था. गधे का लंड खरा हुआ था. कंचन समझ गयी की गधा क्या करने वाला था।

अब तो कंचन के पसीने छ्छूट गये. पीच्चे पीच्चे ससुर जी चल रहे थे. कंचन अपने आप को

कोसने लगी की ससुर जी से क्या सवाल पूच लिया. कंचन का शरम के मारे बुरा हाल था।

रामलाल को अक्च्छा मोका मिल गया था. उसने फिर से कहा,

” बोलो, बहू हैं क्या इसकी पाँच टाँगें ?” कंचन का मुँह शरम

से लाल हो गया, और हकलाती हुई बोली,

” ज्ज…जी चार ही हैं.”

” तो वो पाँचवी चीज़ क्या है बहू?”

” ज्ज्ज….जी वो तो ……..जी हमें नहीं पता.”

„ पहले कभी देखा नहीं बेटी ?” रामलाल मज़े लेता हुआ बोला.

” नहीं पिताजी.” कंचन शरमाते हुए बोली.

” मर्दों की टाँगों के बीच में जो होता है वो तो देखा है ना?”

” जी..” अब तो कंचन का मुँह लाल हो गया.

” अरे बहू जो चीज़ मर्दों के टाँगों के बीच में होती है ये वही

चीज़ तो है.” रामलाल कंचन के साथ इस तरह की बातें कर ही रहा

था की वही हुआ जो कंचन मन ही मन मना रही थी की ना हो. गढ़ा

अचानक गधि पे चढ़ गया और उसने अपना तीन फुट लूंबा लंड गधि

की चूत में पेल दिया. गधा वहीं खरा हो कर गधी के अंडर अपना

लंड पेलने लगा. इतना लूंबा लंड गधी की चूत में जाता देख

कंचन हार्बारा कर रुक गयी और उसके मुँह से चीख निकाल गयी,

” ऊओईइ माआ…..”

” क्या हुआ बहू ?”

” ज्ज्ज…जी कुच्छ नहीं.” कंचन घबराते हुए बोली.

” लगता है हुमारी बहू डर गयी.” रामलाल मौके का पूरा फ़ायदा उठता हुआ डारी

हुई कंचन का

साहस बरहाने के बहाने उसकी पीठ पे हाथ रखता हुआ बोला.

” जी पिताजी.”

” क्यों डरने की क्या बात है ?”

” वैसे ही.”

” वैसे ही क्या मतलब ? कोई तो बात ज़रूर है. पहली बार देख रही हो ना?” रामलाल कंचन

की पीठ सहलाता हुआ बोला.

” जी.” कंचन शरमाते हुए बोली.

” अरे इसमें शरमाने की क्या बात है बहू. जो राकेश तुम्हारे साथ हेर रात करता है

वही ये गधा भी गधि के साथ कर रहा है.”

” लेकिन इसका तो इतना..…….” कंचन के मुँह से अनायास ही निकाल गया और फिर

वो पकचछटायी..

” बहुत बरा है बहू?” रामलाल कंचन की बात पूरी करता हुआ बोला.

अब रामलाल का हाथ फिसल कर कंचन के नितुंबों पे आ गया था.

” ज्जजी…..” कंचन सिर नीचे किए हुए बोली.

” ओ ! तो इसका इतना बरा देख के डर गयी ? कुच्छ मर्दों का भी गधे

जैसा ही होता है बहू. इसमें डरने की क्या बात है ?. जब औरत बारे

से बरा झेल लेती है, फिर ये तो गधी है.”

कंचन का चेहरा शरम से लाल हो गया था. वो बोली,

” चलिए पिताजी वापस चलते हैं, हुमें बहुत शरम आ रही है.”

” क्यों बहू वापस जाने की क्या बात है? तुम तो बहुत शरमाती हो. बस दो मिनिट में

इस गधे का काम ख़तम हो जाएगा फिर खेत में चॅलेंज.” बातों बातों में रामलाल एक

दो बार कंचन के नितुंबों पे हाथ भी फेर चक्का था. रामलाल का लंड कंचन के मुलायम

नितुंबों पर हाथ फेर के खड़ा होने लगा था. वो कंचन की पनटी भी फील कर रहा था।

कंचन क्या करती ? घूँघट में से गधे को अपना लंड गढ़ी के अंडर पेलते हुए देखती रही.

इतना लूंबा लंड गढ़ी के अंडर बाहर जाता देख उसकी चूत पे भी चीटियाँ रेंगने लगी थी.

कंचन को रामलाल का हाथ अपने नितुंबों पर महसूस हो रहा था. इतनी

भोली तो थी नहीं. दुनियादारी अक्च्ची तरह से समझती थी. वो

अक्च्ची तरह समझ रही थी की ससुर जी मौके का फ़ायदा उठा के

सहानुभूति जताने का बहाना करके उसकी पीठ और नितुंबों पे

हाथ फेर रहे हैं. इतने में गधा झार गया और उसने अपना तीन

फुट लूंबा लंड बाहर निकाल लिया. गढ़े के लंड में से अब भी

वीरया गिर रहा था. ससुर जी ने दोनो गधों को रास्ते से हटाया और

कंचन के छूटरों पे हथेली रख कर उसे आगे की ओर हल्के से धक्का

देता हुआ बोला,

” चलो बहू अब हम खेत शेलेट हैं.”

” चलिए पिताजी.”

” बहू मालूम है तुम्हारी सासू मया भी मुझे गधा बोलती है.”

” हाअ… ! क्यों ? आप तो इतने अक्च्चे हैं.”

” बहू तुम तो बहुत भोली हो. वो तो किसी और वजे से मुझे गधा बोलती है.” अचानक

कंचन रामलाल का मतलब समझ गयी. शायद ससुर जी का लंड भी गधे के लंड के

माफिक लूंबा था तुबी सासू मया ससुर जी को गधा बोलती थी. इतनी सी बात समझ

नहीं आई ये सोच कर कंचन अपने आप को मन ही मून कोसने लगी. कंचन सोच रही

थी की ससुर जी उससे कुच्छ ज़्यादा ही खुल कर बातें करने लगे हैं. इस तरह

की बातें बहू

और ससुर के बीच तो नहीं होती हैं. बात बात में प्यार जताने के लिए उसकी

पीठ और नितुंबों

पे भी हाथ फेर देते थे.ठोरि ही देर में दोनो खेत में पहुँच गये. रामलाल

ने कंचन को सारा

खेत दिखाया और खेत में काम करने वाली औरतों से भी मिलवाया. कंचन तक गयी थी

इसलिए रामलाल ने उसे एक आम के पैर के नीचे बैठा दिया.

” बहू तुम यहाँ आराम करो मैं किसी औरत को तुम्हारे पास भेजता हूँ. मुझे

थोरा पंप हाउस में काम है.”

” ठीक है पिताजी मैं यहाँ बैठ जाती हूँ.”

रामलाल पंप हाउस में चला गया. ……..

________________________________________

पंप हाउस में रामलाल ने बीनोकुलर्स (दूरबीन) रखी हुई थी. इस बीनोकुलर से

वो खेत की रखवाली

तो करता ही था पर साथ साथ खेत में काम करने वाली औरतों को भी देखता था. कभी कोई

औरत पेशाब करने जाती या लापरवाही से बैठती तो रामलाल उसकी चूत के दर्शन करने

से कभी नहीं चूकता. आज उसका इरादा बहू की चूत देखने का था. रामलाल दूरबीन से उस

पैर के नीचे देखने लगा जहाँ बहू बैठी थी. बहू बहुत ही खूबसूरत लग रही

थी. लेकिन उसकी

चूत के दर्शन होने का कोई चान्स नहीं लग रहा था. रामलाल मून ही मून माना

रहा था की बहू

पेशाब करने जाए और पंप हाउस की ओर मुँह करके बैठे ताकि उसकी चूत के दर्शन हो सकें।

लेकिन ऐसा कुच्छ नहीं हुआ. रामलाल काफ़ी देर तक कंचन को दूरबीन से देखता रहा. आख़िर

वो अपनी कोशिशों में कामयाब हो गया. बहू ने बैठे बैठे टाँगें मोर ली.

जुब औरतों के आस पास

कोई नहीं होता है तो थोरी लापरवाह हो जाती हैं. जिस तरह से बहू बैठी हुई

थी रामलाल को

लहँगे के नीचे से उसकी गोरी गोरी टाँगें और टाँगों के बीच में सूब कुच्छ

नज़र आने लगा।

रामलाल के दिल की धड़कन बरह गयी. बहू की मांसल जांघों के बीच बहू की चूत पे कसी

हुई सफेद रंग की ककच्ची नज़र आ रही थी. रामलाल ने दूरबीन को ठीक बहू की चूत पे

फोकस किया. ऊफ़ क्या फूली हुई चूत थी. छूट पे कसी हुई ककच्ची का उभार बता रहा था

की बहू की चूत बहुत फूली हुई थी. ककच्ची के दोनो ओर से काली काली झाँटेन नज़र आ

रही थी. यहाँ तक की बहू की चूत का कटाव भी साफ नज़र आ रहा था क्योंकि ककच्ची चूत

की दोनो फांकों के बीच में फाँसी हुई थी. रामलाल का लॉडा खरा होने लगा.

अचानक बहू ने ऐसा

काम किया की रामलाल का लंड बुरी तरह से फंफनाने लगा. बहू ने अपना लहंगा उठा लिया

और अपनी टाँगों के बीच में देखने लगी. शायद कोई छींटा ल़हेंगे में घुस

गया था. ऊफ़ क्या

कातिलाना टाँगें थी. मोटी मोटी गोरी गोरी जांघों के बीच छ्होटी सी

ककच्ची बहू की चूत बरी

मुश्किल से धक रही थी. बहू ने ल़हेंगे के अंडर ठीक से देखा और ल़हेंगे

को झारा. फिर अपनी

चूत को ककच्ची के ऊपर से सहलाया और खुज़ाया. रामलाल को लगा की कहीं छींटा बहू की

ककच्ची के अंडर तो नहीं घुस गया. बहुत किस्मत वाला छींटा होगा. बहू की

इस फूली हुई चूत


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ससुर और बहु में चुदाई 2

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