प्रेषिका: नेहा
मस्तराम डॉट नेट के प्यारे पाठको अब ये कहानी क्या लण्ड में इतना दम है से आगे लिख रही हु.. पिछली गर्मियों की बात है जब मेरे पति की मौसी का लड़का अमर हमारे घर आया हुआ था। वो बहुत ही सीधा साधा और भोला सा है। उसकी उम्र करीब सत्रह-अठारह की होगी, मगर उसका बदन ऐसा कि किसी भी औरत को आकर्षित कर ले। मगर वो ऐसा था कि लड़की को देख कर उनके सामने भी नहीं आता था। मगर मैं उस से चुदने के लिए तड़प रही थी और वो ऐसा बुद्धू था कि उसको मेरी जवानी दिख ही नहीं रही थी। मैं उसको अपनी गाण्ड हिला हिला कर दिखाती रहती मगर वो देख कर भी दूसरी और मुँह फेर लेता। मैं समझ चुकी थी कि यह शर्मीला लड़का कुछ नहीं करेगा, जो करना है मुझे ही करना है।
एक दिन सुबह के करीब नौ बजे का वक्त था। सास और ससुर चाय-नाश्ता करके तैयार हो गुरुद्वारे और खेतों के लिये निकल गये थे। मैं भी नहा-धो कर सज-संवर कर तैयार हुई। फिर नौकरानी से चाय लेकर जब उसके कमरे में गई तो वो सो रहा था मगर उसका बड़ा सा कड़क लौड़ा जाग रहा था। मेरा मतलब कि उसका लौड़ा पजामे के अन्दर खड़ा था और पजामे को टैंट बना रखा था। लण्ड तो मेरी सबसे बड़ी कमज़ोरी है। मेरा मन उसका लौड़ा देख कर बेहाल हो रहा था। अचानक उसकी आँख खुल गई। वो अपने लौड़े को देख कर घबरा गया और झट से अपने ऊपर चादर लेकर अपने लौड़े को छुपा लिया। मैं चाय लेकर बैड पर ही बैठ गई और अपनी कमर उसकी टांगों से लगा दी। वो अपनी टाँगें दूर हटाने की कोशिश कर रहा था मगर मैं ऊपर उठ कर उसके पेट से अपनी गाण्ड लगा कर बैठ गई।
उसकी परेशानी बढ़ती जा रही थी और शायद मेरे गरम बदन के छूने से उसका लौड़ा भी बड़ा हो रहा था जिसको वो चादर से छिपा रहा था। आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
मैंने उसको कहा- “अमर उठो और चाय पी लो!”
मगर वो उठता कैसे… उसके पजामे में तो टैंट बना हुआ था। वो बोला- “भाभी! चाय रख दो, मैं पी लूँगा।”
मैंने कहा- “नहीं! पहले तुम उठो, फिर मैं जाऊँगी।”
तो वो अपनी टांगों को जोड़ कर बैठ गया और बोला- “लाओ भाभी, चाय दो।”
मैंने कहा- “नहीं! पहले अपना मुँह धोकर आओ, फिर चाय पीना।”
अब तो मानो उसको कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। वो बोला- “नहीं भाभी! ऐसे ही पी लेता हूँ, तुम चाय दे दो।”
मैंने चाय एक तरफ़ रख दी और उसका हाथ पकड़ कर उसको खींचते हुए कहा- “नहीं! पहले मुंह धोकर आओ फिर चाय मिलेगी।”
वो एक हाथ से अपने लौड़े पर रखी हुई चादर को संभाल रहा था और बैड से उठने का नाम नहीं ले रहा था। मैंने उसको पूछा- “अमर! यह चादर में क्या छुपा रहे हो?” आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
तो वो बोला- “भाभी कुछ नहीं है।”
मगर मैंने उसकी चादर पकड़ कर खींच दी तो वो दौड़ कर बाथरूम में घुस गया। मुझे उस पर बहुत हंसी आ रही थी। वो काफी देर के बाद बाथरूम से निकला जब उसका लौड़ा बैठ गया।
ऐसे ही एक दिन मैंने अपने कमरे के पंखे की तार डंडे से तोड़ दी और फिर अमर को कहा- “तार लगा दो।”
वो मेरे कमरे में आया और बोला- “भाभी, कोई स्टूल चाहिए… जिस पर मैं खड़ा हो सकूँ।”
मैंने स्टूल ला कर दिया और अमर उस पर चढ़ गया। मैंने नीचे से उसकी टाँगें पकड़ लीं। मेरा हाथ लगते ही जैसे उसको करंट लग गया हो, वो झट से नीचे उतर गया।
मैंने पूछा- “क्या हुआ देवर जी? नीचे क्यों उतर गये?”
तो वो बोला- “भाभी जी, आप मुझे मत पकड़ो, मैं ठीक हूँ।”
जैसे ही वो फिर से ऊपर चढ़ा, मैंने फिर से उसकी टाँगें पकड़ ली। वो फिर से घबरा गया और बोला- “भाभी जी, आप छोड़ दो मुझे, मैं ठीक हूँ।”
मैंने कहा- “नहीं अमर, अगर तुम गिर गये तो…?”
वो बोला- “नहीं गिरता.. आप स्टूल को पकड़ लीजिये…!”
मैंने फिर से शरारत भरी हंसी हसंते हुए कहा- “अरे स्टूल गिर जाये तो गिर जाये, मैं अपने प्यारे देवर को नहीं गिरने दूंगी…!”
मेरी हंसी देख कर वो समझ गया कि भाभी मुझे नहीं छोड़ेंगी और वो चुपचाप फिर से तार ठीक करने लगा।
मैं धीरे-धीरे उसकी टांगों पर हाथ ऊपर ले जाने लगी जिससे उसकी हालत फिर से पतली होती मुझे दिख रही थी। मैं धीरे-धीरे अपने हाथ उसकी जाँघों तक ले आई मगर उसके पसीने गर्मी से कम मेरा हाथ लगने से ज्यादा छुट रहे थे। वो जल्दी से तार ठीक करके बाहर जाने लगा तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली- “देवर जी, आपने मेरा पंखा तो ठीक कर दिया, अब बोलो मैं आपकी क्या सेवा करूँ?”
तो वो बोला- “नहीं भाभी, मैं कोई दुकानदार थोड़े ही हूँ जो आपसे पैसे लूँगा।”
मैंने कहा- “तो मैं कौन से पैसे दे रही हूँ, मैं तो सिर्फ सेवा के बारे में पूछ रही हूँ, जैसे आपको कुछ खिलाऊँ या पिलाऊँ?”
वो बोला- “नहीं भाभी, अभी मैंने कुछ नहीं पीना!” और बाहर भाग गया।
मैं उसको हर रोज ऐसे ही सताती रहती जिसका कुछ असर भी दिखने लगा क्योंकि उसने चोरी-चोरी मुझे देखना शुरू कर दिया। मैं जब भी उसकी ओर अचानक देखती तो वो मेरी गाण्ड या मेरी छाती की तरफ नजरें टिकाये देख रहा होता और मुझे देख कर नजर दूसरी ओर कर लेता। मैं भी जानबूझ कर उसको खाना खिलाते समय अपनी छाती झुक-झुक कर दिखाती, कई बार तो बैठे-बैठे ही उसकी पैंट में तम्बू बन जाता और मुझसे छिपाने की कोशिश करता।
मेरा खुद का हाल भी बहुत खराब था। वो जितना मुझसे दूर भागता, उसके लिये मेरी प्यास उतनी ही ज्यादा भड़क रही थी। उसके लण्ड की कल्पना करके दिन रात मुठ मारती। मैं तो उसका लौड़ा अपनी चूत में घुसवाने के लिए इतनी बेक़रार थी, अगर सास-ससुर का डर न होता तो अब तक मैंने ही उसका बलात्कार कर दिया होता। आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
मैं भूखी शेरनी की तरह उस पर नज़र रखे हुए मौके के इंतज़ार में थी। मगर जल्दी मुझे ऐसा मौका मिल गया। एक दिन हमारे रिश्तेदारों में किसी की मौत हो गई और मेरे सास ससुर को वहाँ जाना पड़ गया।
मैंने आपने मन में ठान ली थी कि आज मैं इस लौन्डे से चुद कर ही रहूंगी… चाहे मुझे उसके साथ कितनी भी जबरदस्ती करनी पड़े, उसके कुँवारे लण्ड से अपनी चूत की आग बुझा कर ही रहुँगी। जो होगा बाद में देखा जायेगा।
सास-ससुर के जाते ही अमर भी मुझसे बचने के लिए बहाने की तलाश में था। पहले तो वो काफी देर तक घर से बाहर रहा। एक घंटे बाद जब मैंने उसके मोबाइल पर फोन किया और खाना खाने के लिए घर बुलाया तब जाकर वो घर आया।
उसके आने के पहले ही मैं फटाफट तैयार हुई। उसे रिझाने के लिये मैंने नेट का बहुत ही झीना और कसा हुआ सलवार-कमीज़ पहन लिया। मेरी कमीज़ का गला कुछ ज्यादा ही गहरा था उर उसके नीचे मेरी ब्रा की झलक बिल्कुल साफ नज़र आ रही थी। अपनी टांगों और गाण्ड की खूबसूरती बढ़ाने के लिये ऊँची ऐड़ी की सैंडल भी पहन ली और थोड़ा मेक-अप भी किया। फिर मूड बनाने के लिये शराब का पैग भी मार लिया।
जब वो आया तो मैं अपना और उसका खाना अपने कमरे में ही ले गई और उसको अपने कमरे में बुला लिया। मगर वो अपना खाना उठा कर अपने कमरे की ओर चल दिया। मेरे लाख कहने के बाद भी वो नहीं रुका तब मैं भी अपना खाना उसके कमरे में ले गई और बिस्तर पर उसके साथ बैठ गई।
वो फिर भी मुझसे शरमा रहा था। मैंने अपना दुपट्टा भी अपनी छाती से हटा लिया मगर वो आज मुझसे बहुत शरमा रहा था। उसको भी पता था कि आज मैं उसको ज्यादा परेशान करूँगी।
मैंने उससे पूछा- “अमर.. मैं तुम को अच्छी नहीं लगती क्या…?”
तो वो बोला- “नहीं भाभी, आप तो बहुत अच्छी हैं…!”
मैंने कहा- “तो फिर तुम मुझसे हमेशा भागते क्यों रहते हो…?”
वो बोला- “भाभी, मैं कहाँ आपसे भागता हूँ?”
मैंने कहा- “फिर अभी क्यों मेरे कमरे से भाग आये थे? शायद मैं तुम को अच्छी नहीं लगती, तभी तो तुम मुझसे ठीक तरह से बात भी नहीं करते!” आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
“नहीं भाभी, अभी तो मैं बस यूँ ही अपने कमरे में आ गया था.. आप तो बहुत अच्छी हैं…”
मैंने थोड़ा डाँटते हुए कहा- “झूठ मत बोलो! मैं तुम को अच्छी नहीं लगती, तभी तो मेरे पास भी नहीं बैठते। अभी भी देखो कैसे दूर होकर बैठे हो? अगर मैं सच में तुम को अच्छी लगती हूँ तो मेरे पास आकर बैठो….!”
मेरी बात सुन कर वो थोड़ा सा मेरी ओर सरक गया।
यह देख कर मैं बिलकुल उसके साथ जुड़ कर बैठ गई जिससे मेरी गाण्ड उसकी जांघ को और मेरी छाती के उभार उसकी बाजू को छूने लगे।
मैंने कहा- “ऐसे बैठते हैं देवर भाभियों के पास…. अब बोलो ऐसे ही बैठो करोगे या दूर दूर…?”
वो बोला- “भाभी, ऐसे ही बैठूँगा मगर मौसी मुझसे गुस्सा तो नहीं होगी? क्योंकि लड़कियों के साथ ऐसे कोई नहीं बैठता।”
मैंने कहा- “अच्छा अगर तुम अपनी मौसी से डरते हो तो उनके सामने मत बैठना। मगर आज वो घर पर नहीं है इसलिए आज जो मैं तुम को कहूँगी वैसा ही करना।”
उसने भी शरमाते हुए हाँ में सर हिला दिया।
अब हम खाना खा चुके थे, मैंने उसे कहा- “अब मेरे कमरे में आ जाओ… वहाँ एयर-कन्डिशनर है!
वो बोला- “भाभी, आप जाओ, मैं आता हूँ।”
उसकी बात सुन कर जब मैंने उसकी पैंट की ओर देखा तो मैं समझ गई कि यह अब उठने की हालत में नहीं है।
मैंने बर्तन उठाये और रसोई में छोड़ कर अपने सैंडल टकटकाती अपने कमरे में आ गई। थोड़ी देर बाद ही अमर भी मेरे कमरे में आ गया और बिस्तर के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
मैंने टीवी चालू किया और बिस्तर पर टाँगें लंबी करके बैठ गई और अमर को भी बिस्तर पर आने के लिए कहा।
वो बोला- “नहीं भाभी, मैं यहाँ ठीक हूँ।”
मैंने कहा- “अच्छा तो अपना वादा भूल गये कि तुम मेरे पास बैठोगे…?”
यह सुन कर उसको बिस्तर पर आना ही पड़ा! मगर फिर भी वो मुझसे दूर ही बैठा। मैंने उसको और नजदीक आने के लिए कहा, वो थोड़ा सा और पास आ गया। मैंने फिर कहा तो थोड़ा ओर वो मेरे पास आ गया, बाकी जो थोड़ी बहुत कसर रहती थी वो मैंने खुद उसके साथ जुड़ कर निकाल दी।
वो नज़रें झुकाये बस मेरे पैरों को ही ताक रहा था। मैंने अपनी एक टाँग थोड़ी उठा कर लचकाते हुए अपना सैंडल पहना हुआ पैर हवा में उसकी नज़रों के सामने मरोड़ा और बोली- “क्यों अमर! सैक्सी हैं ना?”
ये शब्द सुनकर वो सकपक गया! “क…. क… कौन… भाभी!”
मुझे हंसी आ गयी और मैं बोली- “सैंडल! अपने सैंडलों के बारे में पूछ रही हूँ मेरे भोले देवर…! बताओ इनमें मेरे पैर सैक्सी लग रहे हैं कि नहीं?”
“जी..जी भाभी! बहुत सुंदर हैं…!” आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
इसी तरह मैं बीच-बीच में उसे उकसाने के लिये छेड़ रही थी लेकिन वो ऐसे ही छोटे-छोटे जवाब दे कर चुप हो जाता। मेरा सब्र अब जवाब देने लगा था। मैं समझ गयी कि अब तो मुझे इसके साथ जबरदस्ती करनी ही पड़ेगी… पता नहीं फिर मौका मिले या ना मिले। अगर मैं बिल्कुल नंगी भी इसके सामने कड़ी हो जाऊँ तो भी ये चूतिया ऐसे ही नज़रें झुकाये बैठ रहेगा।
टीवी में भी जब भी कोई गर्म नजारा आता तो वो अपना ध्यान दूसरी ओर कर लेता… मगर उसके लौड़े पर मेरा और उन नजारों का असर हो रहा था, जिसको वो बड़ी मुश्किल से अपनी टांगों में छिपा रहा था।
मैंने अपना सर उसके कंधे पर रख दिया और बोली- “अमर आज तो बहुत गर्मी है…”
उसने बस सिर हिला हाँ में जवाब दे दिया। वैसे तो कमरे में ए-सी चल रहा था और गर्मी तो बस मेरे बदन में ही थी।
फिर मैंने अपना दुप्पटा अपने गले से निकाल दिया, जिससे मेरे मम्मे उसके सामने आ गये, वो कभी-कभी मेरे मम्मों की ओर देखता और फिर टीवी देखने लगता। ए-सी में भी उसके पसीने छुटने शुरू हो गये थे।
मैंने कहा- “अमर, तुमको तो बहुत पसीना आ रहा है, तुम अपनी टी-शर्ट उतार लो।”
यह सुनकर तो उसके और छक्के छुट गये, बोला- “नहीं भाभी, मैं ऐसे ही ठीक हूँ।”
मैंने उसकी टी-शर्ट में हाथ घुसा कर उसकी छाती पर हाथ रगड़ कर कहा- “कैसे ठीक हो, यह देखो, कितना पसीना है?” और अपने हाथ से उसकी टी-शर्ट ऊपर उठाने लगी…
वो अपनी टी-शर्ट उतारने को नहीं मान रहा था, तो मैंने उसकी टी-शर्ट अपने दोनों हाथों से ऊपर उठा दी। वो टी-शर्ट को नीचे खींच रहा था और मैं ऊपर.. इसी बीच मैं अपने मम्मे कभी उसकी बाजू पर लगाती और कभी उसकी पीठ पर… और कभी उसके सर से लगाती…
जब वो नहीं माना तो मैंने उसे जबरदस्ती बिस्तर पर गिरा दिया और… खुद उसके ऊपर लेट गई जिससे अब मेरे मम्मे उसकी छाती पर टकरा रहे थे और मैं लगातार उसकी टी-शर्ट ऊपर खींच रही थी। उसके गिरने के कारण उसका लौड़ा भी पैंट में उछल रहा था, जो मेरे पेट से कभी-कभी रगड़ जाता, मगर अमर अपनी कमर को दूसरी ओर घुमा रहा था ताकि उसका लौड़ा मेरे बदन के साथ न लग सके…। आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
आखिर में उसने हर मान ली और मैंने उसकी टी-शर्ट उतार दी।
अब उसकी छाती जिस पर छोटे-छोटे बाल थे मेरे मम्मों के नीचे थी.. मगर मैंने अभी उसको और गर्म करना चाहा ताकि मुझे उसका बलात्कार ना करना पड़े और वो खुद मुझे चोदने के लिए मान जाये।
मैं उसके ऊपर से उठी और रसोई में गयी। मेरी साँसें तेज़ चल रही थी और चेहरा उत्तेजना से तमतमया हुआ था। मैंने शराब का एक पैग बना कर जल्दी से पिया तो कुछ अच्छा लगा। मैंने सोचा कि एक बार फिर रिझाने की कोशिश करके देखती हूँ क्योंकि कुँवारा लौंडा है… कहीं जबरदस्ती करने जल्दी ना झड़ जाये… सब चौपट हो जायेगा।
फिर आईसक्रीम एक ही कप में ले आई। मेरे आने तक वह बैठ चुका था। मैं फिर से उसके साथ बैठ गई और खुद एक चम्मच खाकर कप उसके आगे कर दिया। उसने चम्मच उठाया और आईसक्रीम खाने लगा तो मैंने उसको अपना कंधा मारा जिससे उसकी आईस क्रीम उसके पेट पर गिर गई। मैंने झट से उसके पेट से ऊँगली के साथ आईस क्रीम उठाई और उसी के मुँह की ओर कर दी। उसको समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ आज क्या हो रहा है।
फिर उसने मेरी ऊँगली अपने मुँह में ली और चाट ली मगर मैं अपनी ऊँगली उसके मुँह से नहीं निकाल रही थी। उसने मेरा हाथ पकड़ कर मेरी ऊँगली मुँह से बाहर निकाली।
अब मैंने जानबूझ कर एक बार आईसक्रीम अपनी छाती पर गिरा दी जो मेरे बड़े से गोल उभार पर टिक गई। मैंने एक हाथ में कप पकड़ा था और दूसरे में चम्मच।
मैंने अमर को कहा- “अमर यह देखो, आईसक्रीम गिर गई… इसे उठा कर मेरे मुँह में डाल दो।”
यह देख कर तो अमर की हालत बहुत खराब हो गयी। उसका लौड़ा अब उससे भी नहीं संभल रहा था। उसने डरते हुए मेरे हाथ से चम्मच लेने की कोशिश की मगर मैंने कहा- “अरे अमर, हाथ से डाल दो। चम्मच से तो खुद भी डाल सकती थी।”
यह सुन कर तो वो और चौंक गया..
फिर उसका कांपता हुआ हाथ मेरे मम्मे की तरफ बढ़ा और एक ऊँगली से उसने आईसक्रीम उठाई और फिर मेरे मुँह में डाल दी। मैंने उसकी ऊँगली अपने दांतों के नीचे दबा ली और अपनी जुबान से चाटने लगी। उसने खींच कर अपनी ऊँगली बाहर निकल ली तो मैंने कहा- “क्यों देवर जी दर्द तो नहीं हुआ..?”
उसने कहा- “नहीं भाभी…!”.
मैंने कहा- “फिर इतना डर क्यों रहे हो…?”.
उसने कांपते हुए होंठों से कहा- “नहीं भाभी, डर कैसा…?”
मैंने कहा- “मुझे तो ऐसा ही लग रहा है…!”
फिर मैंने चम्मच फेंक दी और अपनी ऊँगली से उसको आईसक्रीम चटाने लगी। वो डर भी रहा और शरमा भी रहा था और चुपचाप मेरी ऊँगली चाट रहा था।
मैंने कहा- “अब मुझे भी खिलाओ….!” आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
तो उसने भी ऊँगली से मुझे आईसक्रीम खिलानी शुरू कर दी। मैं हर बार उससे कोई ना कोई शरारत कर रही थी और वो और घबरा रहा था। आखिर आईसक्रीम ख़त्म हो गई और हम ठीक से बैठ गये।
मैंने उसको कहा- “अमर, मैं तुम को कैसी लगती हूँ?”
उसने कहा- “बहुत अच्छी!”
तो मैंने पूछा- “कितनी अच्छी?”
उसने फिर कहा- “बहुत अच्छी! भाभी….!”
फिर मैंने कहा- “मेरी एक बात मानोगे..?”
उसने कहा- “हाँ बोलो भाभी…?”
मैंने कहा- “तुम्हारे साथ घुलामस्ती करने से मेरी कमर में दर्द हो रहा है, तुम दबा दोगे…?”
उसने कहा- “ठीक है…”
तो मैं उलटी होकर लेट गई… वो मेरी कमर दबाने लगा।
फिर मैंने कहा- “वो क्रीम भी मेरी कमर पर लगा दो!”
तो वो उठ कर क्रीम लेने गया तब मैंने अपनी कमीज़ उतार दी। अब तो मेरे मम्मे छोटी सी ब्रा में से साफ दिख रहे थे। यह देख कर अमर बुरी तरह से घबरा गया और बोला- “भाभी, यह क्या कर रही हो?”
मैंने कहा- “तुम क्रीम लगाओगे तो कमीज उतारनी ही पड़ेगी… नहीं तो तुम क्रीम कैसे लगाओगे?”
वो चुपचाप बैठ गया और मेरी कमर पर अपना हाथ चलाने लग। फिर मैं उसके सामने सीधी हो गई और कहा- “अमर रहने दो, आओ मेरे साथ ही लेट जाओ।” आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
उसने कहा- “नहीं भाभी! मैं आपके साथ कैसे सो सकता हूँ!”
मैंने कहा- “क्यों नहीं सो सकते…?”
तो वो बोला- “भाभी आप औरत हो और मैं आपके साथ नहीं सो सकता…!”
मैंने उसकी बाजू पकड़ी और अपने ऊपर गिरा लिया और कस कर पकड़ लिया। मैंने कहा- “अमर तुम्हारी कोई सहेली नहीं है क्या?”
उसने कहा- “नहीं भाभी….अब मुझे छोड़ो…!”
मैंने कहा- “नहीं अमर, पहले मुझे अपनी पैंट में दिखाओ कि क्या है जो तो मुझ से छिपा रहे हो…?”
वो बोला- “नहीं भाभी, कुछ नहीं है…!”
मैंने कहा- “नहीं मैं देख कर ही छोड़ूंगी.. मुझे दिखाओ क्या है इसमें…!”
वो बोला- “भाभी, इससे पेशाब करते है… आपने भैया का देखा होगा…!”
मैंने फिर कहा- “मुझे तुम्हारा भी देखना है…!” और पैंट के ऊपर से ही उसको अपने हाथ में पकड़ लिया। हाथ में लेते ही मुझे उसकी गर्मी का एहसास हो गया।
अमर अपना लौड़ा छुड़ाने की कोशिश करने लगा मगर मेरे आगे उसकी एक ना चली! ना चाहते हुए भी उसने मुझे जबरदस्ती करने के लिये मजबूर कर दिया था।
फिर वो बोला- “भाभी अगर किसी को पता चल गया कि मैंने आपको यह दिखाया है तो मुझे बहुत मार पड़ेगी।”
मैंने कहा- “अमर, अगर किसी को पता चलेगा तो मार पड़ेगी… मगर हम किसी को नहीं बतायेंगे।”
फिर मैंने उसकी पैंट की हुक खोली और पैंट नीचे सरका दी। उसका कच्छा भी नीचे सरका दिया… और उसका बड़ा सा लौड़ा मेरे सामने था…. इतना बड़ा लौड़ा मैंने आज तक नहीं देखा था।
मैं बोली- “अमर, तुम मुझसे इसे छिपाने की कोशिश कर रहे थे मगर यह तो अपने आप ही बाहर भाग रहा है….”
अमर ने जल्दी से अपने हाथ से उसको छुपा लिया और पैंट पहनने लगा मगर मैंने खींच कर उसकी पैंट उतार दी और कच्छा भी उतार दिया। अब मैं और सब्र नहीं कर सकती थी और यह मौका हाथ से नहीं जाने दिया और उसका लौड़ा झट से मुँह में ले लिया और जोर-जोर से चूसने लगी।
पहले तो वो मेरे सर को पकड़ कर मुझे दूर करने लगा मगर थोड़ी देर में ही वो शान्त हो गया क्योंकि मेरी जुबान ने अपना जादू दिखा दिया था। अब वो अपना लौड़ा चुसवाने का मजा ले रहा था। मैं उसके लौड़े को जोर-जोर से चूस रही थी और अमर बिस्तर पर बेहाल हो रहा था… उसे भी अपने लौड़ा चुसवाने में मजा आ रहा था। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी। फिर उसके लौड़े ने अपना सारा माल मेरे मुँह में उगल दिया और मेरा मुँह उसके माल से भर गया। मैंने सारा माल पी लिया। आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
मैं अपने हाथों को चाटती हुई उठी और बोली- “अमर अब तुमको कुछ देखना है तो बताओ? मैं दिखाती हूँ!”
उसने मेरे मम्मों की ओर देखा और बोला- “भाभी, आपके ये तो मैंने देख लिए…!”
मैंने कहा- “कुछ और भी देखोगे…?”
उसने कहा- “क्या…?”
मैंने उसको कहा- “मेरी कमर से ब्रा की हुक खोलो!”
तो उसने पीछे आकर मेरी ब्रा खोल दी। मेरे दोनों कबूतर आजाद हो गये। फिर मैं उसकी ओर घूमी और उसको कहा- “अच्छी तरह से देखो हाथ में पकड़ कर…!”
उसने हाथ लगाया और फिर मुझसे बोला- “भाभी, मुझे बहुत डर लग रहा है…!”
मैंने कहा- किसी से मत डरो! किसी को पता नहीं चलेगा! और जैसे मैं कहती हूँ तुम वैसे ही करो, देखना तुम को कितना मजा आता है…!”
फिर मैंने उसका सर अपनी छाती से दबा लिया और अपने मम्मे उसके मुँह पर रगड़ने लगी।
वो भी अब शर्म छोड़ कर मेरे मम्मों का मजा ले रहा था। आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
मैंने अपनी सलवार का नाड़ा खोलते हुए उसको कहा- “मेरी सलवार उतार दो!”
तो उसने मेरी सलवार उतार दी और मुझे नंगी कर दिया। मेरी ट्राउज़र सलवार की चौड़ी मोहरी की वजह से मेरी सैंडल भी उसमें नहीं अटकी। मैंने पैंटी तो पहनी ही नहीं थी। अब हम दोनों नंगे थे। मैंने उसको अपनी बाहों में लिया और अपने साथ लिटा लिया। फिर मैंने उसके होंठ चूसे और फिर मेरी तरह वो भी मेरे होंठ चूसने लगा। अब उसका डर कम हो चुका था और शर्म भी…
अब मैं उसके मुँह के ऊपर अपनी चूत रख कर बैठ गई और कहा- “जैसे मैंने तुम्हारे लौड़े को चूसा है तुम भी मेरी चूत को चाटो और अपनी जुबान मेरी चूत के अन्दर घुसाओ।”
वो मेरी चूत चाटने लगा। उसको अभी तक चूत चाटना नहीं आता था मगर फिर भी वो पूरा मजा दे रहा था। मेरी चूत से पानी निकल रहा था जिसको वो चाटता जा रहा था और कभी-कभी तो मेरी चूत के होंठो को अपने दांतों से काट भी देता था जो मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। उसका लौड़ा फिर से तन चुका था।
अब मैं उठी और अपनी चूत को उसके लौड़े के ऊपर सैट करके बैठ गई, मेरी गीली चूत में उसका लौड़ा आराम से घुस गया पर उसका लौड़ा बहुत बड़ा था। थोड़ा ही अन्दर जाने के बाद मुझे लगने लगा कि यह तो मेरी चूत को फाड़ डालेगा।
शायद उसको भी तकलीफ हो रही थी, वो बोला- “भाभी, मेरा लौड़ा आपकी चूत से दब रहा है।”
मैंने कहा- “बस थोड़ी देर में ठीक हो जायेगा… पहली बार में सबको तकलीफ होती है।” आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | मैंने थोड़ी देर आराम से लौड़ा अन्दर-बाहर किया। फिर जब वो भी नीचे से अपने लौड़े को अन्दर धकेलने लगा तो मैं भी अपनी गाण्ड उठा-उठा कर उसके लौड़े का मजा लेने लगी। अब तक वो भी पूरा गर्म हो चुका था, उसने मुझे अपने नीचे आने के लिए कहा तो मैं वैसे ही लौड़े अन्दर लिए ही एक तरफ़ से होकर उसके नीचे आ गई और वो ऊपर आ गया।
वो मुझे जोर-जोर से धक्के मारना चाहता था। उसका लौड़ा बाहर ना निकल सके इसलिये मैंने अपनी टांगों को उसकी कमर में घुमा लिया कैंची की तरह कस लीं। फिर वो आगे-पीछे होकर धक्के मारने लगा। मैं भी नीचे से उसका साथ दे रही थी, अपनी गाण्ड को हिला-हिला कर। उसके हर धक्के के साथ मेरी सैंडलों की ऊँची ऐड़ियाँ उसके चूतड़ों में गड़ जाती थीं।
काफी देर तक हमारी चुदाई चलती रही और फिर हम दोनों झड़ गये और वैसे ही लेट रहे।
मेरी इस एक चुदाई से अभी प्यास नहीं बुझी थी। इसलिए मैंने फिर से अमर के ऊपर जाकर उसका गर्म करना शुरू किया मगर वो तो पहले से ही तैयार था। अब उसने कोई शर्म नहीं दिखाई और मुझे घोड़ी बनने के लिए बोल दिया।
मैंने भी उसके सामने अपनी गाण्ड उठाई और सर को नीचे झुका दिया और फिर उसने अपना बड़ा सा लौड़ा मेरी चूत में पेल दिया। उसके पहले धक्के ने ही मेरी जान ले ली। उसका लौड़ा मेरी चूत फाड़ कर अन्दर घुस गया। मगर मैं ऐसी ही चुदाई चाहती थी। उस रात अमर ने मुझे तीन बार चोदा। मैं तो उससे गाण्ड भी मरवाना चाहती थी मगर वो एक बार मेरे मुँह में और तीन बार मेरी चूत में झड़ चुका था और उसमे अब हिम्मत बाकी नहीं थी। फिर सुबह-सुबह नौकरानी के आने का वक्त भी हो गया था और मेरे सास-ससुर भी वापस आने वाले थे इसलिये सोचा कि फिर मौका मिलेगा तो गाँड जरूर मरवाउँगी उससे। आगे की कहानी जल्दी ही लिखुगी तब तक पढ़ते रहिये मस्तराम डॉट नेट और मस्त रहिये |
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मेरी सलवार उतार दो
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