प्रेषिका: रिया
पति के दोस्त का मोटा लंड-1 | पति के दोस्त का मोटा लंड-2
गतांग से आगे …. कुत्ते के मूत, मेरे पति विवेक को ज़रा भी आइडिया नहीं था के उसकी छमिया पत्नी पुष्कर में अनुराग से चुदने वाली है.. असल में तो अनुराग को भी अंदाज़ा नहीं था के यहाँ जोधपुर में उसकी पत्नी विवेक से चुदवाने वाली है..
और तो और, वैशाली भी नहीं जानती थी के पुष्कर में उसके पति अनुराग मेरी चूत पर सवार होने वाले हैं..
मैं ही ऐसी एकलौती “रांड़ बुद्धि” थी, जो ये ताड़ चुकी थी के यहाँ हर कोई एक दूसरे के पार्ट्नर के साथ स्वैप कर रहा था..
बिचारे, वैशाली और विवेक ये सोच रहे थे के वो अनुराग और मुझे बेवकूफ़ बना कर, दिनभर जोधपुर के इस आलीशान होटल में चुदाई करने वाले हैं.. दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
जबकि हक़ीक़त ये थी के उनसे ज़्यादा मज़ा, अब अनुराग और मैं पुष्कर में करने वाले थे..
आख़िरकार, सेट हो गया के अनुराग और मैं पुष्कर मंदिर में दर्शन के लिए जाएँगे..
सुबह लगभग 8 बजे, हम दोनों बस से निकल गये.
मैंने नारंगी रंग की साड़ी और उसी रंग का ब्लाउज पहना था..
अनुराग, काफ़ी खुश था..
वो मेरा हाथ, हाथ में लेकर बस मे मेरे से चिपक कर ऐसे बैठा था जैसे के मैं उसकी पत्नी हूँ..
आस पास के लोग भी यहीं सोच रहे होंगे के हम पति पत्नी ही हैं..
असल बात तो यह थी की मैं भी अनुराग जैसे ही स्मार्ट, हैंडसम, अमीर और मेरे हमउम्र लड़के से प्रेम विवाह करना चाहती थी पर मेरी माँ ने विवेक जैसे चूतिए, मिडिल क्लास और बेकार से बोरिंग आदमी से मेरी शादी करा दी थी..
विवेक मुझे तो फूटी आँख नहीं सुहाता था पता नहीं वैशाली को उसमें ऐसा क्या दिखा..
वैसे तो वैशाली का मुझे बहुत बहुत धन्यवाद करना चाहिए क्यूंकी उसने मेरे मन से “पछाताप की भावना” को ख़तम कर दिया था, जो मेरे मन में विवेक को शरीफ और सीधा समझ कर आती थी..
रास्ते में मैंने मेरे पति, विवेक को कॉल किया..
मैं – हेलो!! मैं प्रिया बोल रही हूँ.. !! हम लोग, अब 5-10 मिनट में पुष्कर पहुँचने ही वाले हैं.. !!
विवेक – हाँ ठीक है!! आते आते, हम दोनों के लिए प्रसाद भी ले आना.. !!
मैं – ठीक है, बाइ.. !! अब मैं फोन रखती हूँ.. !! बाद में, बात करते हैं.. !!
ये कहकर, मैं चुप हो गई पर फोन डिसकनेक्ट नहीं किया..
विवेक ने भी फोन डिसकनेक्ट नहीं किया.. शायद, ये सोचकर के मैंने कर दिया है..
फोन चालू था..
मैं उस कमरे में जो कुछ बातें हो रही है सॉफ तो नहीं पर कुछ कुछ सुन पा रही थी..
फोन पर –
विवेक – उफ़ वैशाली.. !! तुम कितना अच्छा लण्ड चूसती हो.. !! उन्ह आअहह.. !! कितना मज़ा आ रहा है.. !! माँ की लौड़ी, प्रिया तो हाथ में लेने से भी शरमाती है.. !! कितना मज़ा आ रहा है.. !! नाटक तो ऐसा करती है, जैसे कभी लंड देखा भी ना हो और चूत इतनी बड़ी हो रखी थी पहली ही रात को की मेरा लंड क्या, मैं पूरा का पूरा घुस जाता उसकी चूत में.. !! साली, कुतिया ने ढोंग करने में तो डिग्री ले रखी है.. !! दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
वैशाली – उउम्म्म्ममम.. !! तुमने जो पागल कुत्ते की तरह मुझे चोदा है, ऐसी चुदाई तो वो अनुराग करता ही नहीं.. !! उसे तो अपने बिज़नेस से ही फ़ुर्सत नहीं है.. !! बस हमेंशा पैसा कमाने में लगा रहता है.. !! ना जाने क्या करेगा, इतने पैसे का.. !! अब तो विवेक मैं तुम्हारी रंडी बनकर रहूंगी.. !! तुम्हें मैं पैसे दूँगी और तुम मुझे इसी तरफ चुदाई का मज़ा देना.. !! जितने पैसे कहोगे, उतने दूँगी.. !! बस, मुझे ऐसे ही चोदना.. !!
अब मैंने फोन बंद कर दिया..
मेरा पति भडुआ बन चुका था और इधर, अनुराग मेरे तरफ देख स्माइल दे रहा था..
मैं उसकी तरफ देख कर हंस रही थी पर उसे लगा के मैं स्माइल दे रही हूँ.. !!.
दिल कर रहा था के अनुराग को बता दूं के तुम मेरे साथ हो और विवेक, वैशाली को पागल कुत्ते की तरह चोद रहा है और तो और, वैशाली उसका लण्ड भी चूस रही है..
लेकिन जाहिर है, मैंने ऐसा कुछ नहीं किया..
पुष्कर पहुँच कर, हम दोनों सीधे एक होटल में गये..
अंदर जाते ही, अनुराग ने मुझे पीछे से पकड़ लिया और मेरे बूब्स को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा..
अनुराग – आज तो पूरा दिन, तुम्हारी चूत में लण्ड डालकर ही रखूँगा.. !! पूरी नंगी करके, चोदूंगा तुम्हें.. !!
मैं – नहीं अनुराग, पहले हम वो काम करेंगे जिसके लिए पुष्कर आए हैं.. !! उसके बाद, ये सब.. !!
वो भी अच्छे बालक की तरह मान गया.. दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
वैसे भी हम जैसे लोग, भगवान से बहुत डरते हैं..
खैर, हम दोनों फ्रेश होकर मंदिर के लिए निकले..
मंदिर दर्शन के बाद प्रसाद लिया और फिर मैंने मंदिर में नीचे पूरा झुक कर अनुराग के पैर छुए..
अनुराग, काफ़ी भावुक हो गया..
उसने मुझे प्यार से कंधे पर हाथ रख कर उठाया और गले से लगा लिया..
आस पास के लोगों को लग रहा था के ये दोनों “पति पत्नी” हैं.. !! काश, ये सच होता..
मेरे पैर छूने से, अनुराग काफ़ी भावुक हो चुका था..
उसने भी सिंदूर लिया और मेरी माँग में भर दिया..
अब अंजाने में ही सही, मैं उसकी पत्नी बन चुकी थी..
हम दोनों वापस, होटल में लौट आए..
रूम में आते ही, मैंने प्रसाद वगेरह अपने बैग में रख दिया..
अनुराग के फिर से पैर छुए और एक आदर्श पत्नी की तरह, उसका आशीर्वाद लिया..
उसने मुझे उठाकर, अपनी बाहों में ले लिया..
अब वो होने वाला था, जिसका इंतेज़ार हम दोनों ही पिछले 4 दिन से कर रहे थे..
अनुराग ने मेरी गाण्ड को, साड़ी के ऊपर से ही दबाना शुरू कर दिया..
वो मुझे प्यार से हर जगह किस करते जा रहा था..
2-5 मिनट किस करने के बाद, उसने मेरी साड़ी का पल्लू गिरा दिया..
बड़े ही अच्छे से, उसने मेरी पूरी साड़ी उतार दी और अब मेरी साड़ी फर्श पर थी..
फिर उसने मुझे अपनी बाहों में उठाकर बिस्तर पर लेटा दिया और मेरे ऊपर आ गया..
उसने फिर, अपने कपड़े भी उतार दिए.. दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
शर्ट, जीन्स और फिर बनियान भी..
अब वो सिर्फ़, जौकी में था..
दुबले पतले विवेक के उलट, उसका गठीला बदन मुझे बहुत पसंद आ रहा था..
मैं उसकी पीठ सहला रही थी और वो मेरे जिस्म पर कभी इधर, कभी उधर किस किए जा रहा था..
धीरे धीरे नीचे आकर, उसने अपना हाथ मेरे पेटिकोट के अंदर डाल दिया और अंदर मेरी जांघों को किस करने लगा..
कुछ देर बाद, बाहर आकर उसने मेरे ब्लाउज के हुक खोल दिए..
पेटिकोट का नाडा भी खोल दिया और उसे फ्लोर पर फेंक दिया..
अब मैं सिर्फ़, ब्रा और पैंटी में थी..
ब्रा और पैंटी, काले रंग की ही थी..
उसने मेरी दूध से सफेद रंग का जिस्म देखा और देख कर उसके मुँह में पानी आ गया..
अब उसने मेरी ब्रा निकाल दी और मेरे “नारंगी जैसे दूध” अब उसके सामने थे..
कुछ देर मेरे गोल चुचे निहारने के बाद, वो एक मम्मे को मुंह मे लेकर चूसने लगा और दूसरे को हाथ में लेकर दबाने लगा..
बीच बीच में वो मेरे भूरे, छोटे से निप्पल को काट भी रहा था..
मेरे मुंह से – अन्म आह इस्स.. !! आह आह अहहहाहा आह अह आ आ अहहा.. !! इयै याया आ आ या अय हेया.. !! आह आह अहहाहा हहाहा आइ इह इयाः आह.. !! s s s s s.. !! आ आ आ आ स स स स स स स स स.. !! इनहया याः इया या या या या या ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह.. !! उई माआअ.. !! की आवाज़ें आ रही थीं..
मुझे “मोनिंग” करने में, काफ़ी मज़ा आ रहा था..
मैं तो चिल्ला चिल्ला कर, चुदवाना चाहती थी पर यहाँ मेरी सिसकारियों से अनुराग में भी कामुकता बढ़ रही थी..
मेरे बूब्स दिल भर के पूरे मज़े से चूसने के बाद, अनुराग नीचे आया और मेरी पैंटी उतार दी..
पैंटी उतार कर वो फ़ौरन बिस्तर से थोड़ा दूर खड़ा गया और उसने कहा – प्रिया, प्लीज़ अपनी टाँगें खोल दो.. !! मैं देखना चाहता हूँ, तुम्हारी चूत कैसी है.. !! दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
मैं भी बेशर्म हो चुकी थी.. असल में, मैं तो थी ही बेशर्म..
मैंने फ़ौरन एक “बाज़ारु छीनाल” की तरह, अपनी दोनों टांगें खोल दी..
अब मेरी “नंगी चिकनी चूत” बिल्कुल उसके सामने थी..
मैं पूरी तरह से “नंगी” थी..
टाँगें खोलने के बाद तो वो पागल सा हो गया..
ऐसा छरहरा बदन और गुलाबी रंग की सफ़ाचट चूत, शायद ही उसने पहले देखी हो..
उसने, अपना अंडरवेअर निकाल दिया..
उसका “लंबा, मोटा और तगड़ा लण्ड” सनसानता हुआ बाहर आया..
उसका लण्ड, मेरे पति के लण्ड से लंबा था और बेहद मोटा..
वो मेरे करीब आ गया और 69 के पोज़िशन में आ कर लेट गया..
अब उसका लण्ड मेरे हाथ में था और मेरी चूत उसके..
वो मेरी चूत में उंगली डालकर, अंदर बाहर कर रहा था और मैं उसके लण्ड और उसके छोटे छोटे टट्टो को सहला रही थी..
वो काफ़ी डीसेंट था, अगर कोई और होता तो अब तक लण्ड मेरे मुंह मे दे देता और शायद मैं ले भी लेती पर वो चूत मे उंगली करने मे ही तलीन था..
कुछ पल के बाद, वो फिर से सीधा हो गया..
मुझे उल्टा कर दिया और मेरी गाण्ड को सूंघने और किस करने लगा..
मुझे बहुत मज़ा आ रहा था..
अनुराग – वाह!! प्रिया तुम्हारी गाण्ड बहुत ही खूबसूरत है.. इतनी गोल और आकर्षक गाण्ड, मैंने आज तक नहीं देखी.. एकदम चिकनी और सुंदर.. !! मज़ा आ गया.. !!
मैं – अनुराग, अब मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा.. !! जल्दी से डालो, मेरी चूत में.. !!
अनुराग ने अब, मेरी गाण्ड पर 2-3 थप्पड़ मार दिए..
उसके मर्द के कड़क हाथ, गाण्ड पर पड़ने से मेरी सफेद गोरी चमड़ी, लाल हो गई..
दर्द हुआ पर ये “जंगलीपना” मुझे बहुत पसंद था, जो अनुराग ने किया था..
मुझे बहुत अच्छा लगा..
फिर उसने मुझे सीधा करके, अपना लण्ड मेरी चूत पर रख दिया..
उसने एक ज़ोर का धक्का दिया..
मैं तो पूरी गीली हो चुकी थी पर फिर भी लण्ड जाने में थोड़ी तकलीफ़ मुझे हुई..
मेरी मुंह से – s s s s s s s s s.. !! आह आँह.. !! फूह यान्ह.. !! आ आ आ आ आ आ आ आ उंह.. !! इयान्ह ह ह ह ह ह आह आ आ आ आह ह हा.. !! उफ्फ मा ह उंह आह.. !! आराम से.. !! निकल गया..
फिर 2-3 धक्कों में, उसका पूरा लण्ड मेरी चूत में अंदर तक चला गया..
धीरे धीरे, वो मुझे चोदने लगा..
मैं भी अपनी गाण्ड उठा उठा कर उससे चुदवाने लगी..
वो मेरे बूब्स को चूस रहा था और मुझे “भकाभक” चोद रहा था..
मैंने अपने नाख़ून, उसके पीठ में घुसा दिए..
उसे खरोंचने लगी..
शायद, उसे दर्द हो रहा होगा पर वो तो मुझे चोदने में ही मस्त था..
उसका घोड़े के साइज़ का लण्ड, अंदर लेने में मुझे बहुत ज़्यादा ही मज़ा आ रहा था..
पहली बार, ऐसा हुआ था के मैं सिर्फ़ चुद नहीं रही थी बल्कि मैं प्यार से चुदवा रही थी..
अपनी चूत उसके लंड के लिए, निसार कर चुकी थी..
अपनी जवानी का मालिक उसे बना चुकी थी और दिल ही दिल में, उसे अपना “असली पति” मान चुकी थी..
कुछ देर ऐसे ही चोदने के बाद, उसने पोज़िशन चेंज की..
उसने मुझे उल्टा किया और पीछे से मेरी चूत में अपना मूसल सा लंड ठूंस दिया..
इस स्टाइल को “डॉगी स्टाइल” कहते हैं..
चूत में लण्ड डालने के पहले, उसने मेरी गाण्ड पर 2-3 थप्पड़ और मारे जो मुझे पहले की तरह काफ़ी पसंद आए..
उसका रफ हाथ जब भी मेरी गाण्ड पर पड़ता, मैं सिहर उठती..
पीछे से चोदने में शायद उसे महारत हासिल थी क्यों के उसके स्ट्रोक्स अब तेज हो गये थे..
काफ़ी ज़ोर ज़ोर से चोद रहा था, वो मुझे.. दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
कुछ देर चोदने के बाद, उसका निकल गया..
मेरी चूत के अंदर ही, उसने अपनी बेहद गाढ़ी क्रीम निकाल दी..
फिर कुछ देर, लण्ड अंदर ही रखा..
मुझे वैसी ही पोज़िशन में रहना अच्छा लगा क्यों के धीरे धीरे, उसके लण्ड का पानी रिस रिस के मेरे अंदर आ रहा था..
लण्ड बाहर निकाल कर, वो मेरे बगल में सो गया..
मैं भी उसके चौड़े सीने पर अपना सिर रख कर सो गई..
उसी तरह 1 या 2 घंटे सोने के बाद, मैं उठी..
वो कमरे में नहीं था..
रूम में, मैं अकेले ही थी.. वो बाहर गया था..
मैंने बाथरूम में जाकर नहा लिया और रूम में आकर, कपड़े पहन लिए..
वो आया और उसके साथ एक वेटर भी था..
स्पेशल लंच का बंदोबस्त किया था, उसने..
वेटर ने लंच डेकोरेट किया और अनुराग ने उसे टिप दी..
फिर हमने, साथ में लंच किया..
लंच करते समय –
अनुराग – धन्यवाद, प्रिया.. !! तुम बहुत खूबसूरत हो.. !! तुम्हारे दूध और गाण्ड का तो मैं दीवाना हो गया हूँ.. !! अब मैं हमेंशा तुम्हारे साथ रहूँगा.. !!
मैं – तुमने भी आज मुझे, मेरे लोडू पति से ज़्यादा मज़ा दिया है.. !! लेकिन अब हमें हर कदम, बड़े संभाल कर रखना होगा.. !!
अनुराग – तुम जैसा कहोगी, मैं वैसा करूँगा…
मैं – तुम मुझे कभी भी मैसेज नहीं करोगे और ना ही कॉल करोगे… जब मैं मिस कॉल दूँगी तभी कॉल करोगे… देहरादून में मेरे काफ़ी रिश्तेदार आते जाते हैं घर पर, इसलिए घर पर मिलना मुश्किल है… हम बाहर ही मिला करेंगे… अनुराग मेरी बातें सुनकर काफ़ी खुश हो गया क्यों के उसे इतनी होशियार लड़की जो मिल गई थी, एक्सटर्नल अफेयर करने के लिए..
वैसे भी वैशाली इतनी खूबसूरत नहीं थी और शायद, उसे मैं कुछ ज़्यादा ही पसंद आ गई थी..
मैंने भी अपनी बातों, अदा, जलवों और नखरों से उसे दीवाना बनाने की पूरी कोशिश की थी और काफ़ी हद तक उसमे सफल भी रही थी..
लंच करने के बाद, उसने कहा के अब निकलते हैं…
4 बज चुके थे और हमें जोधपुर वापस लौटना था..
पर इधर, मेरे दिमाग़ में कुछ और ही चल रहा था..
मैं – अनुराग, मैं आपके लिए कुछ करना चाहती हूँ क्यों के इतना अच्छा सेफ टाइम और प्लेस शायद ही, हमें दुबारा मिले…
अनुराग – हाँ हाँ कहो… क्या करना चाहती हो…
मैं – अनुराग, हमेशा से मेरी तमन्ना थी के मैं किसी मर्द के सामने खुद नंगी होऊं पर हमेशा से ही विवेक मेरे कपड़े उतारते हैं जबकि मुझे अपने कपड़े उतारने का मौका नहीं मिला… मैं तुम्हें बहुत चाहती हूँ इसलिए तुम्हारे सामने मैं तुम्हारे लिए, खुद नंगी होना चाहती हूँ…
अनुराग मेरी बात सुन कर, काफ़ी खुश हो गया..
वो बेड पर बैठ गये और मैं उनके सामने थी.
अनुराग ने मुझे मीठी सी स्माइल दी और मैंने “नंगी होने का खेल” शुरू कर दिया..
मैंने साड़ी खोलना शुरू कर दिया और उसका लण्ड फिर से जीन्स में खड़ा होने लगा..
साड़ी के बाद, मैंने अपने ब्लाउज के हुक खोले और धीरे धीरे ब्लाउज उतार दिया..
फिर, पेटिकोट खोल दिया..
इसके बाद, ब्रा पीछे से खोलकर मैंने अपने 32 साइज़ के बूब्स के जलवे दिखाए..
वो मेरे दूध को, प्यार और लालच से देख रहा था..
अब मैंने बेहद अदा से, पैंटी को उतार दिया..
अब तक, मैं पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी..
मैंने उसे एक टाँग उठा कर, अपनी चूत दिखाई और फिर पलटकर अपनी गाण्ड आगे कर दी और अनुराग को थप्पड़ मारने को कहा.. दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
उसने 3-4 फटके, मेरी गाण्ड पर मार के मेरी लाल कर दी..
मैं – आ ह आ ह आ ह आ ह ऊ ऊ ऊ ऊ… आ ह आ ह आ आ आअशह इश् इस्स इयाः म्म ह ह ह ह ह स स स स स… करके चिल्ला रही थी..
नंगी होने में जो मज़ा मुझे आया वो तो अनुराग के साथ, सेक्स करने में भी नहीं आया..
अब मैं वो करने वाली थी जो अब तक मैंने, गिने चुने मर्दों के साथ ही किया था..
मेरे पति भी इससे अछूते थे..
शादी से पहले, अपने ग्राहक से तो मैं इसके लिए अलग से पैसे लिया करती थी..
मैंने उसकी जीन्स खोल कर, चड्डी नीचे कर दी..
उसका लण्ड मेरे सामने आ गया..
मैंने उसे हाथ में लेकर सहलाया और सीधे मुंह में लेकर चूसने लगी..
अनुराग तो बस पागल हो चुका था..
अब मोनिंग करने की उसकी बारी थी..
उसने कभी सोचा ही नहीं था के मैं ऐसा उसके लिए करूँगी..
अनुराग – प्रिया ह ह ह ह ह… आज पहली बार कोई औरत मेरा लण्ड चूस रही है… कितना मज़ा आ रहा है…
फिर मैंने उसे बेड पर लेटने को कहा और उसके ऊपर चढ़ गई..
अपने हाथों से मैंने उसका लण्ड पकड़ कर अपनी चूत में डाला और चुदवाने लगी..
इस पोज़िशन को “राइडिंग” कहते हैं..
अब वो नीचे लेटकर मेरे बूब्स मसल रहा था और मैं उसका लण्ड उछाल उछाल कर अंदर बाहर कर रही थी..
जब तक उसका पानी नहीं निकल गया तब तक मैंने उसे उसी पोज़िशन मे रखा और चूत मरवाती रही..
फिर निढाल होकर, उसका लण्ड मेरी चूत में ही रखकर उसके ऊपर ही सो गई..
कुछ देर सोने के बाद, उसने कहा – प्रिया ये चुदाई मेरी जिंदगी की अब तक की सबसे मस्त चुदाई थी… आज से तुम, मेरी “असल पत्नी” हो…
मैंने कहा – मुझे पत्नी नहीं, बल्कि तुम्हारी “रखैल” बना कर रखो… जब भी तुम्हारा दिल करे, बस चोदने के लिए ही याद करो… तुम मेरी ज़रूरत पूरी करो और मैं तुम्हारी…
इतने सुनते ही, उसने भी हाँ कहा और अपनी जीन्स उठाकर पर्स निकाला और अपना एक कार्ड मुझे दिया और कहा – ये एक्सट्रा कार्ड है, मेरे पास… ये तुम रखो… जब भी तुम्हें किसी भी चीज़ की ज़रूरत पड़े, पैसे निकाल लेना और इसके लिए मुझसे पूछने की भी ज़रूरत नहीं है… ठीक है…
उसने कार्ड और पिन नंबर, मुझे दे दिया..
फिर, हम दोनों एक साथ बाथरूम में नहाने गये..
पूरा वक़्त, मैं उसके साथ नंगी ही रही..
आख़िर, हम तैयार होकर वापस बस पकड़कर जोधपुर आ गये..
जोधपुर पहुँचने से पहले, मैंने विवेक को कॉल करके कहा था के हम लोग पहुँचने वाले हैं इसलिए उसे भी टाइम मिल गया वैशाली से स्पेस लेने मे..
हमारा ट्रिप पूरा करके, हम देहरादून वापस आ गये..
आज भी मैं अनुरागजी से अपनी चूत और गाण्ड मरवाती हूँ और उसका कार्ड इस्तेमाल करती हूँ..
वैशाली और विवेक कभी भी जान नहीं पाए के पुष्कर में क्या हुआ था और अनुराग भी कभी जान नहीं पाया के वैशाली और विवेक ने जोधपुर के होटल में क्या क्या किया.. दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
ट्रिप से लौटने के 2-3 दिन के बाद, मैंने कार्ड इस्तेमाल करके देखा..
बैलेंस चेक किया तो मैं हैरान रह गई..
उसमे बैलेंस था – 8, 55, 516 रुपए..
मेरी खुशी का अंदाज़ा, आप खुद ही लगा सकते हैं..
शादी से पहले, इतना पैसा तो ना जाने कितनों से कितनी बार चुदवा के भी, मैं नहीं कमा पाई थी..
समाप्त… …
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पति के दोस्त का मोटा लंड-3
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